दोस्तों, आज जानेंगे छत्तीसगढ़ में बनने वाले ईको टूरिज्म स्पॉट के बारे में यह स्पॉट कौन-कौन सा है? शुरुवात कहाँ से किया गया है? और कितने स्पॉट निर्धारित किये गए है? किस आधार पर इसका चयन किया गया है? आखिर ईको स्पॉट बनाने का मतलब क्या है? सरकार यह बनाने के लिए इतना जोर क्यों दे रही है?
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शिवरीनारायण और तुरतुरिया बनेगा ईको टूरिज्म स्पॉट |
आजकल चर्चा में क्यों:-
भगवान राम का वन गमन पथ से छतीसगढ़ प्रदेश को देश में एक नयी पहचान मिलेगी। इसी विज़न को लेकर राज्य सरकार द्वारा पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 2 पर्यटन केंद्रों का विशेष रूप से चयन कर इन्हें इको टूरिज़्म स्पॉट बनाने का निर्णय लिया गया है। जो निम्न लिखित है:
- लव-कुश की जन्मस्थली ( तुरतुरिया)
- शबरी की तपोभूमि (शिवरीनारायण)
कैसे बनेगा ईको टूरिस्म स्पॉट:
राम गमन पथ के पर्यटन स्थानों के विकास को विभिन्न चरणों मे बॉटा गया है, जिसके तहत पहले चरण में 9 स्थानों का सौंदर्यीकरण होगा और विकास किया जाएगा, उन स्थानों में तुरतुरिया और शिवरीनारायण को भी शामिल कर इन्हें इकोटूरिज्म स्पॉट बना कर छतीसगढ़ के इन जगहों को पूरे भारत मे प्रसिद्ध करने की पुरजोर कोशिश की जावेगी।
छत्तीसगढ़ में न केवल प्रभु राम की माता कौशल्या का जन्म हुआ, रामायण के माध्यम से रामकथा को दुनिया के सामने लाने वाले महर्षि बाल्मिकी ने भी इसी भूमि पर आश्रम का निर्माण कर साधना की। प्रदेश की सरकार ने कौशल्या के जन्म-स्थल चंदखुरी की तरह तुरतुरिया के बाल्मिकी आश्रम को भी पर्यटन-तीर्थ के रूप में विकसित करने के लिए कार्य की रूप-रेखा तैयार कर ली है। इसी तरह रामकथा से संबंधित एक और महत्वपूर्ण स्थल शिवरीनारायण के विकास के लिए कार्ययोजना तैयार कर ली गई है।
राम वन गमन पथ :-
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की महत्वाकांक्षी राम वन गमन पथ परियोजना में शामिल हैं। 137.45 करोड़ रुपए की इस परियोजना के पहले चरण में 9 स्थानों को विकास और सौंदर्यीकरण के लिए चिन्हिंत किया गया है। प्रदेश में कुल 75 ऐसे स्थानों की पहचान की गई है, जहां अपने वनवास के दौरान भगवान राम या तो ठहरे थे, अथवा जहां से वे गुजरे थे। दिसंबर माह में चंदखुरी स्थित माता कौशल्या मंदिर परिसर के सौंदर्यीकरण एवं विस्तार के कार्य के शिलान्यास के साथ ही राम वन गमन पथ में स्थित सभी 9 चिन्हिंत स्थानों के भी सौंदर्यीकरण एवं विस्तार के कार्य की शुरुआत की जा चुकी है।
1) तुरतुरिया:
बलौदाबाजार जिले के तुरतुरिया में बाल्मिकी आश्रम तथा उसके आसपास का सौंदर्यीकरण किया जाएगा। यह प्राकृतिक दृश्यों से भरा एक मनोरम स्थान है, जो पहाड़ियों से घिरा हुआ है। यह बारनवापारा अभयारण्य से लगा हुआ है। यहां बालमदेही नदी और नारायणपुर के निकट बहने वाली महानदी पर वाटर फ्रंट डेवलपमेंट किया जाएगा। इन स्थानों पर कॉटेज भी बनाए जाएंगे। तुरतुरिया के ही निकट स्थित एक हजार साल पुराने शिव मंदिर को भी पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा। भगवान राम ने अपने वनवासकाल के दौरान कुछ समय तुरतुरिया के जंगल में भी बिताए थे। ऐसी भी मान्यता है कि लव-कुश का जन्म इसी आश्रम में हुआ था। तुरतुरिया को ईको टुरिज्म स्पाट के रूप में विकसित करने की योजना है।
तुरतुरिया में क्या है खास :
तुरतुरिया प्राकृतिक और औपचारिक स्थान है, जो रायपुर जिले से 84 किमी और बलौदाबाजार जिले से 29 किमी, कसडोल तहसील से 12 किमी दूर, तथा सिरपुर से 23 किमी दूर स्थित है, जिसे तुरतुरिया के नाम से जाना जाता है। उक्त स्थल को सुरसुरी गंगा के नाम से भी जाना जाता है। यह स्थान प्राकृतिक दृश्यों से भरा एक मनोरम स्थान है, जो चारों ओर से पहाड़ी से घिरा हुआ है। इसके आसपास, बारनवापारा वाइल्ड लाइफ सेेंचुरी पास स्थित है। कहा जाता है कि त्रेतायुग में महर्षि वाल्मीकि का आश्रम इसी स्थान पर था और यह लव-कुश का जन्मस्थान था।
इस जगह का नाम की एक विशेष कहानी है, जब बलभद्र नाले की जल प्रवाह चट्टान से होकर गुजरती है तो, उससे टुटुर की आवाज गूंजने लगती है। जिसके कारण इसे तुरतुरिया का नाम दिया गया है। इसका जल प्रवाह एक लंबी संकरी सुरंग से होकर जाता है और एक बेसिन में गिरता है जो प्राचीन ईंटों से निर्मित है। जिस स्थान पर यह पानी कुंड में गिरता है, वहाँ एक गाय का मुँह बनाया गया है, जिसके कारण उसके मुँह से पानी निकलते हुए दिखाई देता है। गोमुख के दोनों किनारों पर दो प्राचीन पत्थर की मूर्तियाँ स्थापित हैं, जो विष्णु जी की हैं, उनमें से एक खड़ी स्थिति में है और दूसरी मूर्ति में विष्णु जी को शेषनाग पर बैठे दिखाया गया है। दो बहादुर व्यक्तियों की प्राचीन पत्थर की मूर्तियाँ कुंड के पास बनाई गई हैं, जिसमें क्रमशः एक वीर को सिंह के साथ प्रदर्शित किया गया है, और दूसरी मूर्ति में एक अन्य वीर व्यक्ति को एक जानवर की गर्दन पहने दिखाया गया है। इस जगह पर शिवलिंग पाए गए हैं, इसके अलावा, प्राचीन पत्थर के स्तंभ भी काफी मात्रा में बिखरे हुए हैं, जिसमें कलात्मक खुदाई की गई है। इसके अलावा, कुछ शिलालेख भी यहां स्थापित हैं।
तुरतुरिया में 3 धर्मों का संगम:
प्राचीन बुद्ध की प्रतिमाएँ भी यहाँ स्थापित हैं। कुछ भग्न मंदिरों के अवशेष भी हैं। इस स्थान पर बौद्ध, वैष्णव और शैव धर्म से संबंधित मूर्तियों की स्थापना की गयी है। यह इस तथ्य को भी स्वीकार करती है कि यहाँ इन तीन संस्कृतियों की मिश्रित संस्कृति रही है। ऐसा माना जाता है कि यहाँ बौद्ध मठ भी थे जिनमें बौद्ध भिक्षु निवास करते थे। सिरपुर के निकट होने के कारण, यह अधिक जोर देता है कि यह स्थान कभी बौद्ध संस्कृति का केंद्र रहा होगा। यहाँ प्राप्त शिलालेखों से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि प्राप्त प्रतिमा का समय लगभग 8-9 वीं शताब्दी की है। आज भी यहां महिला पुजारियों की नियुक्ति होती है जो एक प्राचीन परंपरा है। अप्रैल के महीने में यहाँ तीन दिवसीय मेला लगता है और बड़ी संख्या में भक्त यहाँ आते हैं। धार्मिक और पुरातात्विक स्थल होने के अलावा, यह अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण भी पर्यटकों को आकर्षित करता है।
2) शिवरीनारायण:
शिवरीनारायण भी एक सुंदर जगह है। जांजगीर-चांपा जिले में महानदी, जोंक और शिवनाथ नदियों के संगम पर स्थित धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व का यह स्थान रामकथा से संबंधित होने के साथ-साथ भगवान जगन्नाथ से भी संबंधित है। मान्यताओं के अनुसार यह शहर चारों युगों में विद्यमान रहा, और अलग-अलग नामों से जाना गया। यहीं से भगवान जगन्नाथ का विग्रह ओडिशा के पुरी स्थित मंदिर में ले जाकर स्थापित किया गया। हर साल माघ पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ शिवरीनारायण में विराजते हैं। इस स्थान को गुप्त-तीर्थ तथा छत्तीसगढ़ के जगन्नाथ-पुरी के नाम से भी जाना जाता है। छत्तीसगढ़ शासन ने शिवरीनारायण के भी सौंदर्यीकरण और विकास की कार्ययोजना तैयार की है। यहां भी पर्यटन सुविधाएं विकसित की जा रही हैं।
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शिवरीनारायण |
शिवरीनारायण मंदिर का निर्माण:
लक्ष्मीनारायण मंदिर का निर्माण 11 वीं शताब्दी की उम्र में हयय वंश के राजाओं द्वारा शिवनारायण नगर में महानदी के तट पर किया गया था। रामायण काल का यह शबरी आश्रम हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार यहां स्थित है। शिवनारायण का मंदिर वैष्णव समुदाय द्वारा एक महान वैष्णवशिला की कृति है। माघ पूर्णिमा के दौरान यहां भव्य मेले का आयोजन किया जाता है।
शबरी आश्रम: इतिहास एवं कथाएँ
भक्त माता शबरी के पिता का नाम राजा शबर था।वे इस क्षेत्र के प्रभावी राजा थे। माता शबरी जन्म से ही परम विष्णु भक्त थी। राजा शबर,अपनी पुत्री शबरी का विवाह करना चाहते थे,परंतु शबरी को विवाह करना पसंद नहीं था, जिस कारण शबरी एक दिन अपने घर का परित्याग करके भगवान की खोज में जंगल की ओर निकल पड़ती है, उन्हीं दिनों वह पम्पा नामक एक सरोवर के पास पहुंचती है,जहां पर उन्हें एक आश्रम दिखाई पड़ता है, आश्रम मतंग मुनि का आश्रम था। माता शबरी आश्रम में जाकर मतंग ऋषि से शरण मांगती है, ऋषि ने अपने दिव्य दृष्टि से शबरी को विष्णु भक्त जानकर उसे अपने आश्रम से शरण देते है। ऋषि ने शबरी को अपनी शिष्य बनाया और शिक्षा देना प्रारंभ किया,तथा भक्ति मार्ग का रास्ता प्रशस्त किया। मतंग ऋषि के गुरुकुल की ख्याती बहुत दूर-दूर तक फैली हुई थी।
शिवरीनारायण और रामायण का सम्बन्ध:
भगवान श्री राम वनवास काल के दौरान जब चित्रकूट में निवास कर रहे थे उसी दौरान मतंग ऋषि ने अपना देह त्याग किया, मरणोपरांत आश्रम की सारी जिम्मेदारी शबरी माता को सौंपी गई, क्योंकि शबरी परम तेजस्वी विदुषी और वैष्णव भक्तों के मार्ग पर चलने वाली आचार्या थी। ऋषि ने मृत्यु के समय माता शबरी को यह राज की बात बताई,कि भगवान विष्णु के मानव अवतार के रूप में अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र श्री राम अपने वनवास काल के समय इस आश्रम में आएंगे, जिनके कारण तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी। यह कह कर उन्होंने अपना देह त्याग दिया। माता शबरी इसी के इंतजार में दिन रात फूलों से रास्तों को सजाया करती थी,और भगवान के लिए फलों का इंतजाम करती थी। परंतु उनका यह इंतजार बहुत लंबा चला, जिनके कारण उनकी उम्र काफी बढ़ गई थी, परंतु अचानक एक दिन ऋषि की कही गई बातें सत्य हुई और भगवान राम इस आश्रम में पधारे।अति प्रसन्नता के कारण उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था, उनके पास उस दिन फल भी नहीं थे, सिर्फ बेर के फल ही उनके पास थे परंतु उन्हें संशय था कि फल मीठे होंगे कि नहीं, इस कारण वे फलों को चखकर,सिर्फ मीठे फलों को श्री राम को खिलाने लगीं। भगवान द्वारा उनके निश्छल प्रेम के कारण ये फल ग्रहण कर आत्मविबोर हो गए,और आँखों से अश्रु की धारा बहने लगीं। भगवान राम ने माता को आशीर्वाद स्वरूप नौ प्रकार के भक्ति मार्ग जिसे नवधा के नाम से भी जानते हैं प्रदान किया। यह नव प्रकार की भक्ति मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करती हैं,शबरी यह ज्ञान पाकर धन्य हो जाती है।
होने वाले लाभ:
- छत्तीसगढ़ का नाम रामायण काल से जुड़े होने से देश विदेश के लोग यहाँ पर्यटन के लिए आएंगे।
- यहाँ के युवाओ को रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे।
- पर्यटन का सीधा प्रभाव छत्तीसगढ़ के राजस्व वृद्धि पर पड़ेगा।
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