Roka Chheka Abhiyan kya hai :रोका छेंका अभियान क्या है ?


रोका छेंका अभियान (Roka-Chhenka Abhiyan)
रोका छेंका अभियान (Roka-Chhenka Abhiyan)

दोस्तों, आज छत्तीसगढ़ के एक ऐसी व्यवस्था के बारे में जानेंगे जो अब धीरे-धीरे बंद होती जा रही है, छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार ने इस
रोका-छेंका (Roka- Chheka) व्यवस्था को पुनः शुरू करने का फैसला लिया है। आज हम जानेंगे की आखिर ये रोका-छेंका (Roka- Chheka) व्यवस्था होती क्या है, यह पहले कहां चलता था, व्यवस्था को चलाता कौन था, व्यवस्था का संचालन प्रक्रिया कैसा था, छत्तीसगढ़ सरकार क्यों यह व्यवस्था पुनः लागू करना चाहती है, और यह व्यवस्था कैसे और कहाँ कहाँ लागू होगी। 

इन सारे सवालों का जवाब आगे हम प्राप्त करने की कोशिश करेंगे, जिससे हमें ज्ञात हो जाये की ये प्राचीन व्यवस्था कितनी अच्छी और कितनी सूझ-बुझ से बनायीं गयी थी। 

रोका-छेंका (Roka- Chheka) व्यवस्था क्या है:

रोका-छेंका (Roka- Chheka) व्यवस्था जैसे की नाम से ही पता चलता है की रोका- छेंका एक छत्तीसगढ़ी शब्दों से मिलकर बना है छत्तीसगढ़ी में रोका का अर्थ होता है रोकना और छेंका का अर्थ होता है किसी निर्धारित जगह में प्रवेश वर्जित करना। छत्तीसगढ़ में रोका-छेंका एक व्यवस्था का नाम है  जिसमे पशुओं द्वारा फसलों को होने वाले नुकसान से बचाने के लिए उन्हें किसी जगह रोक कर रखा जाता है, तथा आवारा घूमते मवेशिओं को कांजी हाउस में बंद किया जाता है। 

व्यवस्था कहाँ चलता था :

यह व्यवस्था प्राचीन काल से छत्तीसगढ़ के गॉंवों में वर्षों से संचालित होते आ रही है। परन्तु अब यह व्यवस्था धीरे-धीरे गाँवों में नयी पीढ़ी के आने के कारण चरमराते जा रही है। यह गाँवों में निर्मित ऐसी व्यवस्था है जिससे की फसलों को बचाने के साथ साथ किसी को रोजगार देने का काम भी करता है।
रोका-छेंका अभियान (Roka-Chheka Abhiyan)
रोका-छेंका अभियान (Roka-Chheka Abhiyan)

व्यवस्था को चलाता कौन था :

हमारे देश के 80 प्रतिशत से ज्यादा अन्नदाता गाँवों में निवास करती है, प्राचीन काल से लगभग सारी प्रथा इन्ही अन्नदाताओं अर्थात किसानों के इर्द गिर्द घूमती है। यह व्यवस्था भी गाँवों में रहने वाले सारे किसानों द्वारा पंचायत के देखरेख में चलता है। 

व्यवस्था का संचालन प्रक्रिया कैसा था :

जैसे की ऊपर बताया जा चुका है की रोका-छेंका (Roka- Chheka) व्यवस्था गाँवों में संचालित होती थी, जिसका की एक निश्चित नियम कायदा होता था इसका पालन गाँवों के सारे लोगों को करना अनिवार्य होता था। इस व्यवस्था के संचालन में मुख्य भूमिका होती थी किसानों की होती थी। 

हमें पता है की गाँवों में फसलों का उत्पादन होता है, तब किसान इतने सक्षम नहीं होते थे की वे मवेशिओं से फसलों को बचाने के लिए अपने सारे खेतों में बाढ़ (घेरा) लगा सकें और ये आज भी मुमकिन नहीं है क्योकि खेत अलग-अलग जगहों पर होता है तथा यह काफी खर्चीला भी होता है। किसानों को अपने फसलों को बचाना भी जरुरी होता था अतः वे रोका-छेंका (Roka- Chheka) व्यवस्था को गावों में लागू करते थे। 

गाँवों में ज्यादातर हर घर में कोई न कोई मवेशी जरूर होता है जिनका पालन आम दिनों में आसानी से किया जा सकता है परन्तु फसलों के समय इनका पालन कठनाइयों से भरा होता है इनको चरागाह तक ले जाना-लाना और उनका देख-रेख करना किसानों के लिए आसान नहीं होता क्योंकि किसानों को फसलों का देख-रेख करना ज्यादा जरुरी होता है जिसके लिए किसान किसी व्यक्ति को यह काम सौंपते हैं जिनका काम मवेशिओं का देख रेख करना तथा चरागाह तक ले जाना तथा वापस घर तक लाना होता है, जिसके लिए किसानों के साथ उनका अनुबंध होता है। 
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चूँकि चरवाहे के पास बहुत से मवेशी होते है उनको एक साथ रखना कठिन हो जाता है जिसके कारण कुछ मवेशी अपने चरवाहे के दल से भटक कर खेतों की तरफ चले जाते है जिसे फसलों तक जाने तक रोकना भी जरुरी होता है जिसके लिए किसान एक व्यक्ति को रखते है जिसे छत्तीसगढ़ी में रखवार कहते हैं यह रखवार गाँवों में घूम घूमकर भटके हुए मवेशियों को उनके मालिक तक पहुँचाना होता है जिसके एवज़ में रखवार को मालिक द्वारा अन्नी (एक तरह का हर्जाना) देना होता है। 

चरवाहे और रखवार का अनुबंध किसानों द्वारा  सुविधा अनुसार होता है कुछ किसान यह अनुबंध एक फसल के लिए करतें हैं तो कोई दोनों फसलों के लिए साथ में पंचायत अन्य कार्य भी इन रखवारों से करवाती है जैसे वृक्षों की अवैध कटाई करने वालों को पकड़ना इत्यादि। 

छत्तीसगढ़ सरकार यह व्यवस्था क्यों लागू करना चाहती है  :

छत्तीसगढ़ सरकार रोका-छेंका (Roka- Chheka) व्यवस्था के माध्यम से आवारा मवेशिओं के संख्या पर लगाम लगाना चाहती है जो कि फसलों के नुकसान और विभिन्न दुर्घटनाओं का कारण बनती है। इस व्यवस्था के आधार पर सरकार द्वारा मवेशी पालक से एक संकल्प पत्र भरवाएगी जिसमे मवेशिओं की संख्या तथा उनके देख भाल का जिम्मा मवेशी पालक का होगा अगर मवेशी कही आवारा घूमते नजर आएंगे तो उन्हें विभिन्न नरवा-गरवा-घुरवा अउ बारी के तहत बने गौठानों में रखा जायेगा पालक उन्हें निश्चित दंड राशि देकर वापस घर ले जा सकता है। पालक द्वारा बार बार यह गलती होने पर सरकार के द्वारा अन्य दण्डनात्मक कार्यवाही भी किया जा सकता है। 

गौठानों में रखने के कारण वहां जमा होने वाले अपशिस्ट पदार्थों से खाद निर्माण करने की व्यवस्था होगी, गोबर गैस प्लांट में उपयोग तथा गौठानों  सब्जी मसालों का भी उत्पादन तथा प्रोसेसिंग किया जायेगा। जिससे बाद में विक्रय कर पैसा बनाया जा सकता है जिससे की वह गौठानों में काम करने वालों के लिए काम के साथ साथ पैसों की भी पूर्ति होगी। 

छत्तीसगढ़ सरकार इस व्यवस्था को गाँवों के साथ साथ शहरों और कस्बों में भी लागू कर रही है जिससे की गाँवों में फसलों को बचाया जा सके और शहर तथा कस्बों में आवारा मवेशिओं के सड़कों में घूमने के कारण होने वाले दुर्घटनाओं को काम किया जा सकें। इस व्यवस्था से यातायात में होने वाली परेशानी को भी दूर किया जा सकता है इससे मनुष्यों के साथ साथ मवेशिओं की जान की रक्षा होगी। 

आज आपने क्या सीखा :

आज आपने सीखा छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा चालू किया जाने वाला नयी व्यवस्था रोका-छेंका (Roka- Chheka) व्यवस्था के बारे में, आपको इससे जुड़ी सारी जानकारी प्राप्त हो गयी होगी। अब आप रोका-छेंका (Roka- Chheka) व्यवस्था से जुड़ी काफी सवालों के जवाब देने लायक जानकारी प्राप्त कर चुकें है। 

CG News Hindi

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