दोस्तों, आज हम लोग उस राज के बारे में जानने की कोशिश करेंगे जिसके बारे में बातें कम हुआ करती है। आज उन सारे तथ्यों को जानने की कोशिश करेंगे जो टाइम कैप्सूल (Time Capsule) से जुड़ी है। आखिर भारत में इसका उपयोग हुआ है या नहीं और अगर कहीं हुआ है तो क्यों उपयोग किया गया है ? आज हम इस लेख के माध्यम से उन तमाम पहलुओं के बारे में जानने की कोशिश करेंगे जो इस टाइम कैप्सूल (Time Capsule) से जुड़ी है।
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What is Time Capsule? टाइम कैप्सूल क्या है ? |
आज कल चर्चा में क्यों है?
5 अगस्त 2020 को अयोध्या में श्री राम जन्म भूमि पर एक भव्य मंदिर के निमार्ण के लिए भूमि पूजन का कार्यक्रम माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा किया जाना है। कहा जा रहा है कि इस दौरान मंदिर प्रांगण में 200 फ़ीट नीचे एक टाइम कैप्सूल (Time Capsule) गड़ाया जायेगा। जिस दिन से यह घोषणा हुआ है तब से इसके बारे में अनेक तथ्य सामने आ रहे है।
टाइम कैप्सूल (Time Capsule) क्या है?
टाइम कैप्सूल (Time Capsule) एक ऐसी विशिष्ट धातु की बनी खोखलाकर युक्ति है जिसेमें किसी खास समय के कामकाज से जुड़ी खबरों या अन्य किसी राज को भविष्य वाले व्यक्तियों के लिए संजोकर रखने का एक माध्यम है। अगर आप चाहते हैं की किसी घटना या उससे जुड़ी तथ्यों को भविष्य में लोग जानें तो आप उन सारे तथ्यों को एक सील बंद डिब्बे में रखकर जमीं में दफना देते है। भविष्य में (100, 200 या और अधिक सालों बाद) अगर यह खुदाई के दौरान किसी को प्राप्त होता है तो वह आज के समय की उन सारी जानकारियों को हासिल कर पायेगा और अपने भूतकाल में हुए कार्यों के बारे में भी समझ पायेगा।
टाइम कैप्सूल (Time Capsule) को कैसे बनाया जाता है ?
वैसे तो टाइम कैप्सूल (Time Capsule) बनाने की कोई खास विधि नहीं है परन्तु यह देखा गया है की ताँबे (Copper) में मौसम और विभिन्न रसायनों का ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता है अतः आजकल जो टाइम कैप्सूल (Time Capsule) बनाये जा रहे हैं उनके बाहरी आवरण को विशिष्ट ताँबे का बनाया जा रहा है। कई अन्य पदार्थों के भी जैसे काँच, लोहे आदि के भी कैप्सूल बनाये जा चुके हैं।
टाइम कैप्सूल (Time Capsule) का इतिहास:
टाइम कैप्सूल (Time Capsule) का इतिहास बहुत पुराना है, विश्व में अनेक टाइम कैप्सूल मिले हैं और बहुत सारे दफ़नायें भी जा चुके हैं। सबसे पुराना टाइम कैप्सूल कब बना और कब मिला इस पर भी विवाद है, माना जाता है कि हाल में ही हवा का दबाव और दिशा बताने वाले आकर का एक टाइम कैप्सूल मिला है जो सन 1742 का है परन्तु ज्यादातर लोगो का मानना है कि स्पने के बर्गोस में 30 नवम्बर 2017 को मिले 1777 का टाइम कैप्सूल सबसे पुराना है। इस कैप्सूल में 2 हस्तलिखित पेज भी मिला है जिसमे उस समय के राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक स्थिति के बारे में बताया गया है।
भारत में टाइम कैप्सूल (Time Capsule) का इतिहास:
- 15 अगस्त 1972 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी जी ने लाल किला काम्प्लेक्स के पास 32 फ़ीट नीचे एक टाइम कैप्सूल (Time Capsule) को दफ़न की थी जिसे "कालपात्र" की संज्ञा दी गयी थी, जिस पर विपक्षी पार्टियों द्वारा विरोध दर्ज कराया गया था।
- 2010 में IIT कानपुर के ऑडोटोरियम के निकट तत्कालीन राष्ट्रपति महामहिम प्रतिभा देवी सिंह पाटिल के तत्वाधान में दफनाया गया था।
- गुजरात के 50 वीं वर्षगाँठ पर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा राज्य के इतिहास को टाइम कैप्सूल (Time Capsule) में महात्मा मंदिर प्रांगण में दफनाया गया था जिस पर विपक्षी पार्टियों द्वारा बहुत विरोध किया गया था।
- 2014 में अलेक्जेंड्रा गर्ल्स इंस्टीटूशन मुंबई के द्वारा एक कैप्सूल दफनाया गया है जिसे 1 सितम्बर 2062 को खोलने निकलने का प्लान रखा गया है।
- 4 जनवरी 2019 को लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी पंजाब में 8x8 के एल्युमीनियम और लकड़ी से बना जिसमें गिलास का एक दरवाजा लगे कैप्सूल में एक स्मार्ट फ़ोन, लैंडलाइन टेलीफ़ोन VCR, स्टीरियो प्लेयर, स्टॉप वॉच, कंप्यूटर के हिस्से जैसे हार्ड डिस्क,माउस, लैपटॉप, सी.पी. यु. मदर बोर्ड आदि को यादगार के तौर पर डाला गया।
क्या है इसका उद्देश्य:
जमीन में काफी गहराई तक दबाने का सीधा उद्देश्य है कि सैकड़ों-हजारों सालों बाद भी उस जगह से जुड़े तथ्य सुरक्षित रहे। जैसे अगर किसी भयंकर आपदा में बहुत कुछ तबाह हो जाए और बहुत सालों बाद जमीन की खुदाई हो तो पुरातत्वविदों को पता चले कि अमुक जगह ये था. यानी टाइम कैप्सूल (Time Capsule) इतिहास को भविष्य के लिए संजोने की कोशिश है. राम मंदिर में कैप्सूल दबाने के पीछे भी यही मकसद है।
विशेषज्ञों और पुरातत्वविदों का ऐतराज :
पुरातत्वविदों और इतिहासकारों को कैप्सूल के तरीकों पर ऐतराज है यह इसलिए क्योंकि इसमें डाले जाने वाले अनेक शाक्ष्य किन्ही लोगों की महिमा को दर्शाने के लिए भी उपयोग किया गया है। यह शाक्ष्य भविष्य में इतिहासकारों के लिए कोई सही जानकारी मुहैया नहीं कराती है बल्कि किसी व्यक्ति विशेष का महिमामण्डन करती है।
उनका ये भी मानना है कि अगर टाइम कैप्सूल (Time Capsule) में दबी चीजें कंप्यूटर की भाषा में हैं तो हो सकता है कि आज से सदियों बाद वे बेकार हो जाएं. तब तकनीक इतनी आगे जा चुकी होगी कि हमारी तकनीक से बनी चीजें पुरानी और बेकार हो जाएंगी. ऐसे में जानकारी डिकोड नहीं हो पाएगी. यही बात भाषा के साथ भी हो सकती है. उनका मानना है कि लिखी हुई चीजों की जगह वीडियो या तस्वीरें बनाई जानी चाहिए. हालांकि अब तक लिखे और डिजिटल तरीके पर ही भरोसा होता आया है।
टाइम कैप्सूल अयोध्या में क्यों डाला जा रहा है?
आप सब को पता है की अयोध्या में राम मंदिर बनने का सफर कितना कठनाइयों भरा था, इसके लिए कितनी लड़ाइयां लड़ी गयी हाई कोर्ट का सहारा लिया गया। आगे जाकर अगर कोई विवाद जन्म भूमि को लेकर पैदा होता है और भविष्य में कोई भी इतिहास देखना चाहेगा तो श्रीराम जन्मभूमि के संघर्ष के इतिहास के साथ यह तथ्य भी निकल कर आएगा, जिससे कोई भी विवाद जन्म ही नहीं लेगा।
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