आकांक्षी जिलों की डेल्टा रैंकिंग में छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल और नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले को पूरे देश में प्रथम स्थान मिला है। नीति आयोग द्वारा आज जून-2020 की स्थिति में जारी की गई आकांक्षी जिलों की रैंकिंग में बीजापुर ने विभिन्न मानकों पर अच्छा प्रदर्शन करते हुए शीर्ष स्थान हासिल किया है।
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राष्ट्रिय आकांक्षी जिला कार्यक्रम में बीजापुर को मिला पुरे देश में पहला स्थान |
गौरतलब है कि स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा, कौशल विकास, कृषि, जल संसाधन, वित्तीय समावेशन और बुनियादी अधोसंरचना विकास के क्षेत्र में बेहतर कार्य करते हुए बीजापुर ने अपने डेल्टा अंकों में पूरे देश में सर्वाधिक 2.3 अंकों की वृद्धि की है। फरवरी में हुई डेल्टा रैंकिंग में बीजापुर को 48.1 अंक मिले थे जबकि जून की रैंकिंग में इसे 50.4 अंक मिले हैं। बीजापुर के डेल्टा अंकों में बढ़ोतरी पूरे देश में सर्वाधिक है। आकांक्षी जिलों के रूप में शामिल देश भर के 112 जिलों में बीजापुर जिले ने पहला स्थान हासिल किया है।
कार्यक्रम का नाम: आकांक्षी जिला कार्यक्रम
कार्यक्रम की शुरुआत: जनवरी 2018
जिलों की संख्या: पुरे देश में 115 जिले
रैंकिंग का निर्धारण: डेल्टा रैंकिंग के द्वारा।
रैंकिंग जारी करना: केंद्र का नीति आयोग।
भारत में जीवन गुणवत्ता विभिन्न अंतर-राज्यीय और अंतर-ज़िला विविधताओं पर निर्भर करती है। अर्थव्यवस्था की इस विषमता को दूर करने के लिये सरकार ने जनवरी 2018 में आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम (Aspirational Districts’ programme-ADP) लागू किया था।
आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम (Aspirational Districts’ Programme):
- वर्ष 2018 में शुरू हुए इस कार्यक्रम का उद्देश्य देश के सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े ज़िलों की पहचान कर उनके समग्र विकास में सहायता करना है।
- इस कार्य हेतु देश के 28 राज्यों से 115 ज़िलों की पहचान की गई थी।
- राज्य इस कार्यक्रम के प्रमुख परिचालक हैं और केंद्र की ओर से नीति आयोग द्वारा इसका संचालन किया जा रहा है। इसके अलावा कई मंत्रालय भी योजना के कार्यान्वयन में योगदान दे रहे हैं।
गौरतलब है कि यह कार्यक्रम मुख्यतः पाँच विषयों (1) स्वास्थ्य एवं पोषण, (2) शिक्षा, (3) कृषि एवं जल संसाधन, (4) वित्तीय समावेश एवं कौशल विकास और (5) बुनियादी आधारभूत ढाँचे पर केंद्रित है।
गौरतलब है कि उपरोक्त पाँचों विषयों का नागरिकों के जीवन पर प्रत्यक्ष प्रभाव देखने को मिलता है।
यह कार्यक्रम मुख्यतः 3 सिद्धांतों पर आधारित है:
- अभिसरण (केंद्रीय और राज्य योजनाओं का)
- सहयोग (नागरिकों एवं सरकारी प्रशासकों के बीच)
- ज़िलों के मध्य प्रतिस्पर्द्धा
इस कार्यक्रम के तहत नीति आयोग द्वारा ज़िलों की प्रगति का मूल्यांकन किया जाता है एवं उन्हें रैंकिंग दी जाती है।
उल्लेखनीय है कि ADP दुनिया में परिणाम-केंद्रित शासन के सबसे बड़े प्रयोगों में से एक है।
कार्यक्रम की विशेषता:
- राज्य इस कार्यक्रम में मुख्य प्रेरक की भूमिका निभाएंगे।
- प्रत्येक ज़िले की क्षमता के अनुसार कार्य किया जाएगा।
- समाज के प्रत्येक वर्ग विशेषकर युवाओं को इससे जोड़ने का प्रयास किया जाएगा।
- क्षेत्र विशेष के महत्त्वपूर्ण पक्षों की पहचान कर उनके विकास पर बल दिया जाएगा।
- प्रतिस्पर्द्धा की भावना जगाने के लिये प्रगति का आकलन और उसकी रैंकिंग की जाएगी।
कार्यक्रम के प्रमुख क्षेत्र एवं रैंकिंग की क्रियाविधि:
इस कार्यक्रम का उद्देश्य वास्तविक समय में प्रगति के माध्यम से 5 मुख्य क्षेत्रों के 49 संकेतकों पर आकांक्षी ज़िलों का मूल्यांकन करना है। इसके तहत विभिन्न जिलों की प्रगति का मूल्यांकन देश एवं राज्य के सबसे प्रगतिशील जिले से अंतर के आधार पर किया जाता है। इसके पश्चात् आकांक्षी जिलों की रैंकिंग निर्धारित की जाती है। इसमें निम्नलिखित क्षेत्र शामिल हैं-
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आकांक्षी जिला कार्यक्रम में शामिल क्षेत्र |
स्वास्थ्य एवं पोषण: यदि रैंकिंग को 100 प्रतिशत सूचकांक में परिवर्तित किया जाए तो इसमें स्वास्थ्य एवं पोषण को 30 प्रतिशत हिस्से के रूप में शामिल किया गया है। इसमें प्रसव-पूर्व देखभाल, प्रसव-पश्चात् देखभाल, लैंगिक समता, नवजात का स्वास्थ्य, बच्चों का विकास, संक्रामक बीमारी तथा स्वास्थ्य क्षेत्र से संबंधित अवसंरचना के कुल 13 संकेतकों पर मूल्यांकन किया जाता है।
शिक्षा: इस सूचकांक में शैक्षणिक क्षेत्र भी 30 प्रतिशत का योगदान करता है, जिसमें 8 संकेतकों को शामिल किया गया है। इसमें शिक्षा से जुड़े परिणाम पर विशेष ध्यान दिया जाता है, जैसे-प्राथमिक स्कूल से बच्चों का उच्च प्राथमिक स्कूल तथा उसके बाद माध्यमिक कक्षा में प्रवेश की दर, गणित एवं भाषा विषय में औसत अंक आदि। साथ ही स्कूल की अवसंरचना जिसमें बालिकाओं के लिये शौचालय, पेयजल तथा स्कूल में बिजली की आपूर्ति आदि को शामिल किया जाता है। इसके अतिरिक्त अन्य संस्थानिक संकेतक जैसे-छात्र-शिक्षक अनुपात, समय पर पुस्तकों का वितरण भी इसमें शामिल किया जाता है।
कृषि एवं जल संसाधन: भारत एक कृषि प्रधान देश है। वर्तमान में 50 प्रतिशत से अधिक कार्यबल कृषि और कृषि से संबंधित गतिविधियों से अपना रोज़गार प्राप्त करता है। इस सूचकांक में 20 प्रतिशत हिस्सा तथा 10 संकेतक कृषि एवं जल संसाधन से संबंधित हैं। इसके अंतर्गत पैदावार की उत्पादकता, उत्पाद का उचित मूल्य, बीजों की गुणवत्ता, मृदा स्वास्थ्य कार्ड, साथ ही संस्थागत सहयोग जिसमें फसल बीमा, ई-विपणन, कृत्रिम गर्भाधान, पशुओं का टीकाकरण आदि शामिल किये जाते हैं, पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
आधारभूत ढाँचा: यह क्षेत्र सूचकांक में 10 प्रतिशत सहयोग प्रदान करता है, साथ ही इसके अंतर्गत 7 संकेतक शामिल किये जाते हैं। इन संकेतकों में सभी परिवारों के लिये घर जिसमें शौचालय, पेयजल, बिजली तथा संचार हेतु रोड कनेक्टिविटी की सुविधा हो। इसके साथ ही ज़िलों का मूल्यांकन ग्राम पंचायतों में इंटरनेट कनेक्शन तथा सामान्य सुविधा केंद्र की उपस्थिति के आधार पर भी किया जाता है।
वित्तीय समावेशन एवं कौशल विकास: वित्तीय समावेशन एवं कौशल विकास दोनों मिलकर इस सूचकांक में 10 प्रतिशत योगदान देते हैं। साथ ही इसके अंतर्गत 6 संकेतकों पर प्रगति को मापा जाता है। केंद्र सरकार की योजनाएँ जैसे-अटल पेंशन योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना आदि तक लोगों की पहुँच, संस्थागत बैकिंग व्यवस्था की लोगों तक पहुँच जिसमें जन धन योजना को शामिल किया जाता है तथा लघु एवं छोटे उद्योगों के लिये बैंकिंग ऋण प्राप्ति में सुगमता जैसे-मुद्रा लोन आदि के आधार पर जिलों का मूल्यांकन कर रैंकिंग प्रदान की जाती है।
कार्यक्रम का प्रभाव:
- गौरतलब है कि कार्यक्रम के कार्यान्वयन के पश्चात् ज़िलों के स्वास्थ्य परिणामों में पहले और दूसरे स्वास्थ्य घरेलू सर्वेक्षण (जून-अगस्त 2018 और जनवरी-मार्च 2019) के बीच महत्त्वपूर्ण सुधार पाया गया।
- स्वास्थ्य प्रणाली में गर्भवती महिलाओं के पंजीकरण की दर में वृद्धि देखने को मिली है। यह 73 प्रतिशत से बढ़कर 86 प्रतिशत तक पहुँच गई है।
- अस्पतालों तथा स्वास्थ्य देखभाल विशेषज्ञों की देखरेख में पैदा होने वाले बच्चों की संख्या भी 66 प्रतिशत से बढ़कर 74 प्रतिशत तक पहुँच गई है।
- इसके अलावा इस कार्यक्रम से विकास के विकेंद्रीकरण को भी बल मिला है और अब ज़िला स्तर पर भी विकास की संभावनाएँ तलाशी जा रही हैं।
- विभिन्न नागरिक समाज संगठनों और ज़िला प्रशासन के मध्य साझेदारी स्थानीय क्षमता को बढ़ाती है।
- ADP के प्रभाव से संबंधी प्रारंभिक परिणाम काफी सकारात्मक और उत्साहजनक हैं, परंतु इसमें कुछ नया करने के लिये अभी भी कुछ स्थान बाकि है।
- ADP का तीसरा बड़ा सिद्धांत है ज़िलों के मध्य प्रतिस्पर्द्धा और यह अंतिम परिणामों के लिये ज़िला प्रशासन या ज़िला सरकार की प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाना है।
ADP से जुड़ी चुनौतियाँ
- ADP अपर्याप्त बजटीय संसाधनों से संबंधित समस्या से प्रभावित है।
- गौरतलब है कि यह कार्यक्रम कई मंत्रालयों द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है, जिसके कारण कभी-कभी समन्वय के अभाव की समस्या सामने आती है।
- स्थानीय स्तर पर कार्यक्रम के कार्यान्वयन और डिज़ाइन में सुधार के लिये उच्च गुणवत्ता वाला प्रशासनिक डेटा महत्त्वपूर्ण होता है।
- इस संदर्भ में नीति आयोग द्वारा जारी डेल्टा रैंकिंग भी स्वयं गुणवत्ता के बजाय मात्रा का आकलन करने पर केंद्रित है।
- स्कूलों में पाठ्यपुस्तकों का समय पर वितरण डेल्टा रैंकिंग का हिस्सा है, हालाँकि पाठ्यपुस्तक वितरण किसी एक ज़िले में समस्या हो सकती है तथा किसी अन्य में नहीं। इसके साथ ही भारत में शिक्षा की गुणवत्ता भी काफी निराशजनक है और वर्ष 2018 में जारी शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट में भी यह तथ्य उजागर हुआ था।
सुझाव:
- एक अधिक सरलीकृत सूचकांक की आवश्यकता है, जिसमें विभिन्न परिणाम संकेतकों को सावधानीपूर्वक चुना गया हो ताकि राष्ट्रीय विकास लक्ष्यों को अधिक स्पष्ट रूप से दर्शाया जा सके।
- स्थानीय प्रशासन को और अधिक वित्तीय स्वायत्तता दी जानी चाहिये।
- प्रशासनिक डेटा में सुधार के लिये प्रत्येक ज़िले की आंतरिक क्षमता में बढ़ोतरी की जानी चाहिये।
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