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गोधन न्याय योजना (Godhan Nyay Yojna) |
दोस्तों छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार ने गोधन न्याय योजना (Godhan Nyay Yojna) नामक एक नयी योजना छत्तीसगढ़ में शुरू की है जिसका मुख्य उद्देश्य कम होते गौ पालन को एक लाभप्रद व्यवसाय बनाना है।
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ राज्य में गौ-पालन को आर्थिक रूप से लाभदायी बनाने तथा खुले में चराई की रोकथाम तथा सड़कों एवं शहरों में जहां-तहां आवारा घुमते पशुओं के प्रबंधन एवं पर्यावरण की रक्षा के लिए छत्तीसगढ़ राज्य में गोधन न्याय योजना (Godhan Nyay Yojna) शुरू करने का एलान किया है। इस योजना की शुरूआत राज्य में हरेली पर्व के शुभ दिन से होगी।
इस योजना का उद्देश्य प्रदेश में गौपालन को बढ़ावा देने के साथ ही उनकी सुरक्षा और उसके माध्यम से पशुपालकों को आर्थिक रूप से लाभ पहुंचाना है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार ने बीते डेढ़ सालों में छत्तीसगढ़ की चार चिन्हारी नरवा, गरूवा, घुरूवा, बाड़ी के माध्यम से राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने चारों चिन्हारियों को बढ़ावा देने का प्रयास किया है।
गांवों में पशुधन के संरक्षण और संवर्धन के लिए गौठानों का निर्माण किया गया है। राज्य के 2200 गांवों में गौठानों का निर्माण हो चुका है और 2800 गांवों में गौठानों का निर्माण किया जा रहा है। आने वाले दो-तीन महीने में लगभग 5 हजार गांवों में गौठान बन जाएंगे। इन गौठानों को हम आजीविका केन्द्र के रूप में विकसित कर रहे हैं। यहां बड़ी मात्रा में वर्मी कम्पोस्ट का निर्माण भी महिला स्व-सहायता समूहों के माध्यम से शुरू किया गया है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि गोधन न्याय योजना (Godhan Nyay Yojna) योजना राज्य के पशुपालकों के आर्थिक हितों के संरक्षण की एक अभिनव योजना साबित होगी। उन्होंने कहा कि पशुपालकों से गोबर क्रय करने के लिए दर निर्धारित की जाएगी। दर के निर्धारण के लिए कृषि एवं जल संसाधन मंत्री श्री रविन्द्र चौबे की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय मंत्री मण्डलीय उप समिति गठित की गई है। इस समिति में वन मंत्री श्री मोहम्मद अकबर, सहकारिता मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम, नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ. शिव कुमार डहरिया, राजस्व मंत्री श्री जयसिंह अग्रवाल शामिल किए गए हैं।
राज्य में हरेली पर्व से गोधन न्याय योजना (Godhan Nyay Yojna) के माध्यम से पशुपालकों एवं किसानों से गोबर निर्धारित दर पर क्रय किए जाने की शुरूआत होगी। यह योजना राज्य में अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण साबित होगी और इसके दूरगामी परिणाम होंगे। इसके माध्यम से गांवों में रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। मुख्यमंत्री ने किसानों, पशुपालकों एवं बुद्धिजीवियों से राज्य में गोबर खरीदी के दर निर्धारण के संबंध में सुझाव देने का भी आग्रह किया।
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य में खुले में चराई की परंपरा रही है। इससे पशुओं के साथ-साथ किसानों की फसलों का भी नुकसान होता है। शहरों में आवारा घूमने वाले मवेशियों से सड़क दुर्घटनाएं होती है, जिससे जान-माल दोनों का नुकसान होता है। उन्होंने कहा कि गाय पालक दूध निकालने के बाद उन्हें खुले में छोड़ देते हैं। यह स्थिति गोधन न्याय योजना (Godhan Nyay Yojna) के लागू होने के बाद से पूरी तरह बदल जाएगी। पशु पालक अपने पशुओं के चारे-पानी का प्रबंध करने के साथ-साथ उन्हें बांधकर रखेंगे, ताकि उन्हें गोबर मिल सके, जिसे वह बेचकर आर्थिक लाभ प्राप्त कर सके। मुख्यमंत्री ने कहा कि शहरों में आवारा घूमते पशुओं की रोकथाम, गोबर क्रय से लेकर इसके जरिए वर्मी खाद के उत्पादन तक की पूरी व्यवस्था नगरीय प्रशासन करेगा।
संभावित उत्पादन एवं लाभ:
पशुधन विकास विभाग के उप संचालक डॉ. एस.पी.सिंह बताया कि है कि इस योजना के लिए एक स्टडी भी किया गया है जिसके अंतर्गत कोरबा जिले को चुना गया, इस योजना को कैसे क्रियान्वित किया जायेगा और उत्पादन की मात्रा के साथ साथ उससे होने वाले लाभ के बारे में भी स्टडी की गयी है, इसी स्टडी के आधार पर कोरबा जिले के डाटा को इकठ्ठा करके पुरे राज्य में होने वाले उत्पादन और लाभ को निर्धारित किया गया है।
इस स्टडी के आधार पर कोरबा जिले के केवल 197 गोठान गांवों में पशुधन से मिलने वाले गोबर से ग्रामीणों को सालाना 17 करोड़ रूपये से अधिक की अतिरिक्त आय मिल सकती है। केवल गावों के गोठान से मिले गोबर से यदि कम्पोस्ट खाद बना दी जाये तो यह आय लगभग दस गुना तक बढ़कर 171 करोड़ रूपये तक पहुंच सकती है।
इस पूरे कैलकुलेशन के पीछे पशुधन विशेषज्ञों का पूरा गणित है। कोरबा जिले में सात सौ से अधिक गांव हैं। जिनमें से अब तक 197 गांवों में नरवा, गरूवा, घुरवा, बाड़ी विकास कार्यक्रम के तहत सुव्यवस्थित गोठानों का निर्माण पूरा हो गया है। इन गांवों के गोठान में पशुओं की संख्या एक लाख 56 हजार 279 हैं। अगर औसत देखा जाये तो एक पशु एक दिन में लगभग छह किलोग्राम गोबर के हिसाब से एक दिन में ही इन गांवों में नौ लाख 37 हजार 674 किलोग्राम गोबर का उत्पादन संभावित है। इस हिसाब से कोरबा जिले के 197 गोठान गांवों में ही प्रति वर्ष लगभग 34 करोड़ 22 लाख 51 हजार किलोग्राम गोबर का उत्पादन हो सकता है।
विशेषज्ञों की मानें तो यदि राज्य सरकार पचास पैसे प्रति किलो की दर से भी ग्रामीणों से गोबर खरीदती है तो केवल कोरबा जिले के गांवों के गोठान से ही प्रतिदिन ग्रामीणों को चार लाख 68 हजार 837 रूपये और प्रतिवर्ष 17 करोड़ 11 लाख 25 हजार 505 रूपये की अतिरिक्त आमदनी हो सकती है। इसी गोबर से यदि वर्मी कम्पोस्ट खाद बना लिया जाये तो उसका रेट लगभग दस गुना बढ़ सकता है। दो किलो गोबर से एक किलो खाद उत्पादन के मान से भी केवल गोठान गांवों से ही लगभग 17 करोड़ 11 लाख 25 हजार किलो से अधिक खाद का उत्पादन हो सकता है। जिले में वर्तमान में गोठानों में उत्पादित होने वाले वर्मी कम्पोस्ट को महिला स्व सहायता समूहों द्वारा दस रूपये प्रतिकिलो की दर से बेचा जा रहा है। पशुधनों के गोबर से बनी खाद को भी यदि इसी दर पर बेचा जाता है तो ग्रामीणों को 171 करोड़ 12 लाख 55 हजार रूपये की सालाना अतिरिक्त आमदनी मिल सकती है।
उपरोक्त गणना केवल और केवल कोरबा जिले की है अगर इसे पुरे छत्तीसगढ़ के आधार पर देखा जाये तो खाद का उत्पादन और उससे होने वाले लाभ अरबों रूपये में चली जाती है। यह एक ऐसी योजना है जिसका अगर सही से क्रियान्वयन होता है तो इसका सीधा सीधा फायदा लोगो को होगा जिससे गावों के लोगों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी साथ ही साथ रोजगार भी मिलेगा और गावों से होने वाले पलायन की दर भी घटेगी।
स्रोत: जनसंपर्क विभाग छतीसगढ़
cgnewshindi.in |
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