किसान इन तरीकों से बचा सकतें फसलों को बीमारी से | जानें रोग और उनके रोकथाम के बारे में |

किसान इन तरीकों से बचा सकतें फसलों को बीमारी से | जानें रोग और उनके रोकथाम के बारे में
किसान इन तरीकों से बचा सकतें फसलों को बीमारी से | जानें रोग और उनके रोकथाम के बारे में 

छत्तीसगढ़ में खरीफ फसल के रूप में धान, सोयाबीन, अरहर (निरा), साग-सब्जी एवं अन्य फसलों की बुआई हुई है। वर्तमान मौसमी परिस्थिति में छत्तीसगढ़ की मुख्य फसल धान में कीट व्याधि के प्रकोप की संभावना को ध्यान में रखते हुये विभागीय मैदानी अमलों को क्षेत्र में निरन्तर भ्रमण कर फसल व कीट व्याधि की स्थिति का सतत् निरीक्षण कर कृषकों को कीट व्याधि के उचित प्रबंधन हेतु समसामयिक सलाह दी जा रही है। वर्तमान में धान के फसल में बैक्टिरिया लीफ ब्लाईट, शीथ ब्लाईट एवं भूरा माहों कीट का प्रकोप मुख्य रूप से देखा जा रहा है।

बैक्टिरिया लीफ ब्लाईट:

बैक्टिरिया लीफ ब्लाईट (जीवाणु जनित झुलसा) जीवाणु से होने वाला रोग है जिसके लक्षण सामान्यता बोआई रोपाई के 20 से 25 दिन बाद दिखाई देना प्रारंभ होता है। 

लक्षण:

इस रोग में पत्ती, किनारे वाले ऊपरी भाग से सूखने लगती है और रोग ग्रसित पौधे कमजोर हो जाते है तथा उसमें कम कन्सें निकलते है। 

उपचार:

रोग का प्रक्रोप दिखाई देते ही खेत का पानी निकाल कर 25 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से पोटाश का उपयोग करना चाहिए। इसके अतिरिक्त रासयनिक नियंत्रण के लिए स्ट्रेप्टोमाइसीन सल्फेट 90 प्रतिशत टेट्रासाइक्लिीन हाइड्रोक्लोराइड 10 प्रतिशत 15 ग्राम या कासुगामाइसीन और सी.ओ.सी. 50 प्रतिशत डब्लू.पी. 500 ग्राम प्रति एकड 200 लीटर पानी में उपयोग कर सकते है।

शीथ ब्लाईट:

लक्षण:

शीथ ब्लाइट के लक्षण प्रारंभिक रूप से गोल या अंडाकार हरे भूरे पनीले धब्बे के रूप में पौधों में पानी के सतह पर दिखते हैं। अनुकूल परिस्थिति मिलने पर यह धब्बे आपस में मिलकर अनियमित गहरे भूरे किनारे वाले तथा केंद्र पर धूसर स्लेटी सफेद रंग के बड़े धब्बे बन जाते हैं, जो कार्य पूरी पत्ती को सुखा देते हैं।

उपचार:

शीथ ब्लाईट के लिए कार्बेडाजिम 50 प्रतिशत डब्लू.पी. 500 ग्राम या हेक्जाकोनाजोल 5.0 प्रतिशत 1.0 ली. 500 मिली. प्रति एकड़।

बैक्टीरियल लीफ स्ट्रीक:

इस रोग में पत्तियों पर अलग-अलग धारीदार लाल भूरे रंग के धब्बे बनते है जो बाद में सफेद चकत्ते के रूप में हो जाते है, इसके नियंत्रण के लिए बलाइटक्स 50 प्रतिशत डब्लू.पी. 500 ग्राम या कापरआक्सीक्लोराइड 500 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी के साथ उपयोग करें।   

भूरा माहों:

भूरा माहू से प्रभावित क्षेत्र में इमीडा क्लोप्रीड 17.8 प्रतिशत लिक्विड की 40-50 मि.ग्रा. मात्रा को 250 ली. पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव किया जा सकता है। इसके  बिफेनथ्रिन 10 प्रतिषत ई.सी. 100 मि.ली. या फेनोब्यूकार्न, 50 ई.सी., 400-500 मि.ली. या ब्यूप्रोफेजिन 25 प्रतिशत 120-200 मि.ली. प्रति एकड़।

तनाछेदक कीट:

धान के तनाछेदक कीट के नियंत्रण के लिए क्लोरोसाईपर की 300 मि.ली. प्रति एकड़ की दर से या फोरेट 10 प्रतिशत दानेदार की 4-5 किलो ग्राम प्रति एकड़ की दर से प्रभावित क्षेत्र में किसान छिड़काव कर सकते हैं। 

ब्लास्ट रोग:

लक्षण:

ब्लास्ट रोग होने पर धान के पत्तियों, बाली की गर्दनों एवं तने के निचली गठानों पर मुख्य रुप से दिखाई देते हैं। पत्तियों पर इस रोग के प्रारंभिक धब्बे बुवाई के 15 दिन बाद से धान के पकते समय तक देखे जा सकते हैं। रोग की प्रारंभिक अवस्था में निचली पत्तियों पर हल्के बैंगनी रंग के छोटे-छोटे धब्बे बनते हैं जो धीरे-धीरे बढ़कर आंख के समान बीच में चौड़े व किनारों पर सकरे हो जाते हैं। इन धब्बों के बीच का भाग हल्के भूरे रंग का होता है तथा तने के गठान के ऊपर भी इस रोग का आक्रमण होता है, जिससे वे काली हो जाती हैं तथा पौधे इन ग्रसित गठानों से टूट जाते हैं। रोग के प्रकोप से धान के बाली की ग्रीवा पर सड़न पैदा हो जाती है,जिससे बाली टूट कर गिर जाती है, तथा उपज प्रभावित होती है।  

उपचार:

धान में ब्लास्ट रोग प्रमुख रोग है, जिसमें बाली निकलने के दौरान लक्षण दिखाई देने पर ट्राईसाईक्लाजोन 75 प्रतिशत की 120 ग्राम के दर से प्रति एकड़ में या कार्बेंडाजिन 50 प्रतिशत की 15-20 ग्रा. मात्रा को 15 ली. पानी में घोलकर निरंतर अंतराल में छिड़काव करें। 

लीफ ब्लाईट के लक्षण दिखाई देने पर प्रोपेकोनाजोल की 20 मि.ग्रा. की मात्रा को 15-20 ली. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

जिंक की कमी:

जिन क्षेत्रों में जिंक की कमी के कारण धान पत्तियों पर हल्के पीले रंग के धब्बे बन रहे हैं, वहां पर जिंक सल्फेट 25 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। 

गेरूवा रोग:

सोयाबीन फसल में गेरूवा रोग के कारण पत्तियों की निचली सतह पर हल्के पीले, भूरे या लाल रंग के धब्बे बनते है जिसके रोकथाम के लिए फफूंद नाशक प्रोपिकोनाजोल का 0.1 प्रतिशत का घोल बनाकर 8-10 दिन के अंतराल में छिड़काव कर सकते हैं। 

समन्वित कीट एवं रोग प्रबंधन हेतु सलाह:

फसलों में कीट व्याधि के आर्थिक क्षति स्तर का ध्यान रखते हुये समुचित प्रबंधन हेतु समन्वित कीट एवं रोग प्रबंधन तकनीकों का उपयोग करने के लिए व्यापक प्रचार-प्रसार कर मैदानी अमलों द्वारा कृषकों को तकनीकी सलाह दी जा रही है। इसके अंतर्गत विभिन्न गैर रासयनिक तकनीको जैसे-प्रकाश प्रपंच, चिपचिपे प्रपंच, खेतों में टी आकार की खुटियां, अनुशंसित उर्वरक उपयोग करते हुये रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग को न्यूनतम कर कीट व्याधि का समुचित प्रबंधन किया जा सकता है। इससे फसलों में पौध संरक्षण के साथ साथ हानिकारक रसायनों का पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है।

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