बाघ संगणना रिपोर्ट-2018। TIGER CENSUS-2018 | जानें क्या है स्थिति और कैसे करते है गणना ?

बाघ संगणना रिपोर्ट-2018।TIGER CENSUS-2018 |
बाघ संगणना रिपोर्ट-2018।TIGER CENSUS-2018 | 

आज कल चर्चा में क्यों ?

'इंटरनेशनल टाइगर डे' 29 जुलाई 2020 को 'केंद्रीय पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री’ (MoEFCC) द्वारा ‘अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस’ के अवसर पर ‘बाघ संगणना-2018’ की विस्तृत स्थिति (Detail Status of Tigers Census- 2018) रिपोर्ट जारी की। 

प्रमुख बिंदु:

  • 'भारत में बाघों की स्थिति' की सारांश रिपोर्ट जुलाई 2019 में प्रधानमंत्री द्वारा जारी की गई थी। 
  • विस्तृत रिपोर्ट में, वर्ष 2018-19 सर्वेक्षण से प्राप्त जानकारी कि तुलना पूर्व के तीन सर्वेक्षणों (वर्ष 2006, वर्ष 2010 और वर्ष 2014) के साथ की गई है।

छत्तीसगढ़ में टाइगर रिजर्व :

छतीसगढ़ में बाघों की संख्या में भारी कमी देखी गयी है। जहाँ टाइगर सेंसेस-2018 रिपोर्ट के अनुसार छतीसगढ़ में बचे बाघों की संख्या सिर्फ 19 हो गयी है। अगर पिछले रिपोर्ट की तुलना करें तो 2006 में बाघों की संख्या 26, 2010 में बाघों की संख्या 26 ही रही अपरिवर्तित ,2014 में बाघों की संख्या बढ़कर 46 हो गयी जो कि छतीसगढ़ में सर्वाधिक रही। 2018 में यह फिर घटकर 19 हो गयी है।

वर्तमान में छतीसगढ़ में 3 टाइगर रिजर्व क्षेत्रों को गणना में विशेष स्थान दिया गया है, टाइगर सेंसस रिपोर्ट के अनुसार इन टाइगर रिजर्व क्षेत्रों में बाघों की संख्या निम्नलिखित है:-
  1. इंद्रावती नेशनल पार्क टाइगर रिजर्व- 3 बाघ
  2. अचानकमार अभ्यारण्य टाइगर रिजर्व- 5 बाघ
  3. सीतानदी-उदयन्ति टाइगर रिज़र्व- 1 बाघ

चूँकि छतीसगढ़ में जंगलों और अभ्यारण्य की कोई कमी नहीं है फिर भी छतीसगढ़ में बाघों की संख्या में इस तरह का गिरावट छतीसगढ़ वन विभाग के प्रशासनिक तंत्र पर घोर प्रश्न चिन्ह लगाता है। वर्ष 2014 रिपोर्ट में 46 बाघों से 2018 रिपोर्ट में 19 बाघ यह साफ प्रदर्शित करता है कि 27 बाघ या तो मर गए या वन माफियाओं द्वारा मार डाले गए।

सवाल यहाँ पर यह है, कि ये आखिर गए तो गए कहाँ?? वन विभाग के उच्च अधिकारियों का कहना ये है,कि टाइगर सेंसस रिपोर्ट देखकर ही कुछ कहेंगें। इसका मतलब ये हुआ कि छत्तीसगढ़ के वन विभाग को छतीसगढ़ में टाइगर की संख्या से कोई मतलब ही नहीं, या गणना से संबंधित कोई जानकारी ही नही।यह सब वन विभाग की निरंकुशता प्रदर्शित करता है।


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सेंट पीटर्सबर्ग घोषणा (St. Petersburg Declaration):

  • 'प्रतिवर्ष 29 जुलाई को बाघ संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिये 'अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस’ आयोजित किया जाता है, इसकी शुरुआत वर्ष 2010 में 'सेंट पीटर्सबर्ग टाइगर समिट' के समय की गई थी। 
  • 'सेंट पीटर्सबर्ग टाइगर समिट' के दौरान बाघ संरक्षण पर ‘सेंट पीटर्सबर्ग घोषणा' (Petersburg Declaration) पर हस्ताक्षर किये गए जिसमें सभी ‘टाइगर रेंज कंट्रीज़’ द्वारा 2022 तक बाघों की संख्या दोगुनी करने का संकल्प लिया गया था।
  • वर्तमान में भारत, बांग्लादेश, भूटान, कंबोडिया, चीन, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, नेपाल, रूस, थाईलैंड और वियतनाम सहित कुल 13 देश 'टाइगर रेंज कंट्रीज़' में शामिल है।
  • 2,967 बाघों की संख्या के साथ भारत ने चार वर्ष पूर्व ही ‘सेंट पीटर्सबर्ग घोषणा' के लक्ष्य को प्राप्त कर लिया है। 
  • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य है कि वर्ष 2006 में भारत में बाघों की संख्या 1,400 के आसपास थी।

विस्तृत रिपोर्ट की अद्वितीयता:

  • बाघ के अलावा अन्य सह-शिकारियों और प्रजातियों के लिये ‘बहुतायत सूचकांक’ (Abundance Index) तैयार किये गए हैं।
  • ‘बहुतायत सूचकांक’ किसी क्षेत्र में सह-शिकारियों और प्रजातियों के सापेक्षिक वितरण को दर्शाता है।
  • पहली बार 'सभी कैमरा ट्रैप साइट्स' पर बाघों का लिंगानुपात दर्ज़ किया गया है।
  • रिपोर्ट में पहली बार बाघों की आबादी पर मानव-जनित प्रभाव के संबंध में विस्तृत वर्णन दिया गया है।
  • किसी टाइगर रिज़र्व के विशेष हिस्से में (Pockets ) में बाघ की बहुतायतता को पहली बार दर्शाया गया है।
  • बाघ संगणना-2018 को दुनिया के सबसे बड़े 'कैमरा ट्रैप सर्वे ऑफ वाइल्डलाइफ' के रूप में 'गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड' के रूप में दर्ज किया गया है।
  • रिपोर्ट में प्रमुख 'बाघ गलियारों' की स्थिति का मूल्यांकन किया गया है और सुभेद्य क्षेत्रों; जहाँ विशेष संरक्षण की आवश्यकता है, पर प्रकाश डाला गया है।
  • बाघ संगणना के लिये 'मॉनिटरिंग सिस्‍टम फॉर टाइगर्स इंटेंसिव प्रोटेक्‍शन एंड इकोलॉजिकल स्‍टेट्स (Monitoring system for Tigers’ Intensive Protection and Ecological Status) अर्थात M-STrIPES का इस्‍तेमाल किया गया।

रिपोर्ट संबंधी तथ्यात्मक जानकारी:

1. राष्ट्रीय विश्लेषण:

  • रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2006-2018 के बीच भारत में बाघों की संख्या में प्रतिवर्ष 6 प्रतिशत की वृद्धि दर हुई है।
  • वर्ष 2014 की तुलना में वर्ष 2018 में बाघों की संख्या में लगभग 33% की वृद्धि दर्ज की गई है।
  • वैश्विक बाघों की आबादी की लगभग 70 प्रतिशत भारत में है। 
  • पश्चिमी घाट, लगभग 724 बाघों की संख्या के साथ दुनिया का सबसे बड़ा सतत् बाघ आबादी वाला क्षेत्र है। 
  • इसमें सतत् क्षेत्र नागरहोल-बांदीपुर-वायनाड-मुदुमलाई- सत्यमंगलम-बीआरटी ब्लॉक शामिल हैं।

2. क्षेत्रीय विश्लेषण:

  • बाघों की सबसे अधिक संख्‍या मध्‍य प्रदेश में (526) पाई गई, इसके बाद कर्नाटक (524) और उत्‍तराखंड का स्थान (442) है।
  • पूर्वोत्तर भारत के अलावा छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा में बाघों की स्थिति में लगातार गिरावट आई है, जो चिंता का विषय है।
  • गौरतलब है कि इस नई रिपोर्ट में तीन टाइगर रिज़र्व बुक्सा (पश्चिम बंगाल), डंपा (मिज़ोरम) और पलामू (झारखंड) में बाघों की कोई उपस्थिति दर्ज नहीं की गई है।

बाघों की बढ़ती संख्या का महत्त्व:

  • बाघ और अन्य वन्य-जीव किसी भी देश की ‘सॉफ्ट पावर’ (Soft Power) के रूप में कार्य करते हैं, भारत अंतर्राष्ट्रीय मोर्चे पर अपनी इस शक्ति का प्रदर्शन कर सकता है।
  • वन्य जीवों के संरक्षण की दिशा में किये गए प्रयास भारत को "पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक" में रैंकिंग सुधारने में मदद करेंगे। 

बाघ संरक्षण के समक्ष चुनौतियाँ:

  • बाघों के प्राकृतिक निवास स्थान और शिकार स्थान छोटे होने के कारण मानव-वन्यजीव संघर्ष देखने को मिलता है।
  • बाघ निवास स्थानों को अधिकांशतः मानव गतिविधियों द्वारा नष्ट किया जा रहा है। वनों और घास के मैदानों को कृषि ज़रूरतों के लिये परिवर्तित किया जा रहा है।
  • कुछ टाइगर रिज़र्व बाघों की संख्या के हिसाब से पूर्ण क्षमता को प्राप्त कर चुके हैं। इन टाइगर रिज़र्व में अतिरिक्त बाघों के लिये कोई आवास स्थान उपलब्ध नहीं है। 
  • कुछ टाइगर रिज़र्वों में गिरती बाघों की संख्या भी चिंता का एक महत्त्वपूर्ण विषय है। 

सरकार की नवीन पहल:

सरकार मानव-पशु संघर्ष की चुनौती से निपटने के लिये एक कार्यक्रम पर कार्य कर रही है, जिसके तहत वनों में ही जानवरों को जल और चारा उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाएगा। 
इसके लिये पहली बार LiDAR (Light Detection and Ranging) आधारित सर्वेक्षण तकनीक का उपयोग किया जाएगा। 

क्या है यह LiDAR तकनीकी/पद्धति: 

  • यह तकनीकी लेज़र प्रकाश के साथ लक्ष्य को रोशन करने तथा एक सेंसर के साथ प्रतिबिंब को मापने के लिये दूरी को मापने की तकनीकी है। 
  • LiDAR तकनीकी/पद्धति का प्रयोग सामान्यत: भू-वैज्ञानिकों तथा सर्वेक्षणकर्त्ताओं द्वारा उच्च-रिज़ॉल्यूशन क्षमता के नक्शे तैयार करने के अलावा किसी साइट का सर्वेक्षण करने के लिये किया जाता है
  • प्राप्त प्रतिबिंब को एक सेंसर से मापा जाता है।

LiDAR तकनीकी का महत्त्व:

  • LiDAR तकनीकी का प्रयोग घरेलू वास्तुकला और क्षेत्र में खंदक और किलेबंदी जैसी रक्षात्मक वास्तुकला को समझने में मददगार हो सकता है।
  • यह तकनीकी जल विज्ञान और जल प्रबंधन प्रणालियों को ओर अधिक विस्तार से समझाने में मददगार साबित हो सकती है। 
  • इस तकनीकी के माध्यम से समय की बचत होगी।
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